किसी व्यक्ति द्वारा अयोग्य(undesirable) व्यवहार करने पर विकार मुझे क्यों होता है?
इसका कारण मुझमे यानि मेरे अचेतन मन में संचित अहंकार, आसक्ति, राग, द्वेष, मोह आदि की गांठे है, जिन पर उक्त घटना के आघात लगने पर क्रोध, द्वेष आदि विकार चेतन मन पर उभरते हैं। इसलिये जिस व्यक्ति का अंतर्मन परम शुद्ध है, उसे ऐसी घटनाओ से कोई विकार या अशांति नही हो पाती।
उस महापुरुष(भगवान् बुद्ध) ने लोगो के कल्याण के लिए इस समस्या का हल बताया की किसी भी कारण से जब कभी मन में विकार जागता है तो एक तो सांस की गति में अस्वाभाविकता आ जाती है, और दूसरे शरीर के अंग-प्रत्यंग में सूक्ष्म स्तर पर किसी न किसी प्रकार की जीव- रासायनिक(biochemical reaction) होने लगती है।
यदि इन दोनों को देखने का अभ्यास किया जाय तो परोक्ष रूप से अपने मन के विकार को देखने का काम ही होने लगता है, और विकार स्वतः क्षीण(feeble) होते होते निर्मूल होने लगता है।
सतत अभ्यास द्वारा अपने आपको देखने की कला जितनी पुष्ट होती है, उतनी ही स्वभाव का अंग बनती है और धीरे धीरे ऐसी स्थिति आती है की विकार जागते ही नही, अथवा जागते हैं तो बहुत दीर्घ समय तक चल नही पाते।
No comments:
Post a Comment