गुरूजी--थोड़े से भी कड़वे बोल प्यार- मोहब्बत के माहोल में विष भर देते हैं।
जैसे की कांजी की थोड़ी सी बुँदे, मणो दूध को फाड़कर बिगाड़ देती हैं।
कांजी का-सा विस भर्या,
बोल्या बचन कठोर।
मणा दूध न फाड़तां,
जरा न आयो जोर।।
नासमझ व्यक्ति कटु वचन द्वारा लोगो के हृदय को पीड़ित करता है तो बदले में उसे भी सजा ही मिलती है।
तभी कहा गया-
खीरा सिर ते काट कर,
मलिए नमक लगाय।
रहिमन कड़वे मुखन की,
चहियत इहै सजाय।।
खारा खीरा हो तो उसे सिर से काट कर उस पर नमक लगा कर मलते हैं तो ही खाने लायक होता है।कटु भाषी को कटे पर नमक छिड़कने की सजा भुगतनी ही पड़ती है।
जगत दुखी विस बचन से,
दुःख स्वयं भी पाय।
देख बिसेले सांप का,
मुँह कुचला ही जाय।।
कटु भाषी ओरो को भी दुखी बनाता है, खुद भी दुखी होता है।ओरो को भी पीड़ित करता है, खुद भी पीड़ित होता है।
किसी किसी की आदत पड़ जाती है, जब मुँह खोलता है तो ऊंची आवाज में ही बोलता है।
जो बात नीची आवाज़ में सरलता से कही जा सकती है, समझाई जा सकती है, उसे कटुता के स्वर में बोलता है।
स्वयं दुखी होता है, ओरो को दुखी बनाता है।पर स्वभाव इतना गहरा बना लिया कि चाहते हुए भी उसे बदल नही पाता।
सांप केंचुली त्याग दे,
पर विष त्यागा नहि जाय।
लेकीन अंतर्मुखी होकर मन को सुधारने की कला सिख ले तो अपना स्वभाव बदल लें, अपना मंगल साध लें।
उत्तम मंगल का मालिक हो जाय।
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