Friday, 11 March 2016

Vipassana in Burma Still practiced since Last 2500 years in its pure form

गुरूजी--सोभाग्य से यह
आत्म-निरिक्षण यानी स्व-निरीक्षण का अभ्यास, विपश्यना की साधना विधि ब्रह्मदेश(Burma) में दो हज़ार पच्चीसों वर्षो से आज तक अपने शुद्ध रूप में जीवित है।

मुझे सोभाग्य से इस विधि को वहीँ सिखने का कल्याणकारी अवसर प्राप्त हुआ।

शारीरिक रोग के साथ साथ मानसिक विकारो और आसक्ति भरे तनावों से छुटकारा पाने का रास्ता मिला।

सचमुच एक नया जीवन ही मिला। धर्म का मर्म जीवन में उतार सकने की एक मंगल विद्या प्राप्त हुई।

यह विधि तो इस देश की पुरातन निधि(old treasure) है। पवित्र सम्पदा है। किसी भी कारण से यहाँ से विलुप्त(lost) हो गयी।

🌷 मै तो भागीरथ की तरह इस खोयी हुई धर्म-गंगा को ब्रह्मदेश से यहाँ, इस देश में, पुनः ले आया हूँ और इसे अपना बड़ा सोभाग्य मानता हूँ।

💐मनुष्य का कल्याणकारी जीवन.

हम भाग्यशाली हैं की ऐसे कल्प में जन्मे हैं जिस कल्प में 2500 वर्ष पूर्व कोई एक व्यक्ति असंख्य कल्पो से अपनी पारमिताओं को पूरा करता करता सम्यक सम्बुद्ध हो गया।

और बड़े भाग्य की बात है की उसकी शिक्षा(शासन) अभी तक जीवित है।

ऐसे समय में और मनुष्य के रूप में जन्मे।

   🌷"दुर्लभ है मनुष्य जीवन"🌷

मनुष्य के पास इतनी बड़ी शक्ति है की वह अंतर्मुखी होकर अपने आप को देख सके।शरीर और चित्त के प्रपंच को देखकर समझ सके।

किस प्रकार विकारो का प्रजनन हो रहा है? किस प्रकार विकारो का संवर्धन हो रहा है? किस प्रकार इसका संवर किया जा सकता है? रोक जा सकता है। किस प्रकार इसकी निर्जरा की जा सकती है?

मनुष्य के पास ही यह क्षमता है।

सारे प्राणियो में इसलिए मनुष्य का जीवन बड़ा श्रेष्ठ है।

बेचारे मनुष्य अपनी अज्ञान अवस्था में कहते है की मरने पर कोई व्यक्ति देवलोक में या ब्रह्मलोक में जा जन्मे तो उसकी सदगति हो गयी, लेकिन भगवान् कहते हैं की कोई देवता या ब्रह्मा मरकर मनुष्य योनि प्राप्त करे तो उसकी सदगति हो गयी।
बड़ा कल्याण हुआ।

इतना कल्याणकारी मनुष्य का जीवन प्राप्त हुआ।

ऐसा ना हो के प्राप्त होकर भी कोरा निकल जाए।

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