Tuesday, 22 August 2017

गुरूजी--गृहस्थो के लिये सतरहवां मंगल धर्म है- अनवज्जानी कम्मानि यानी वही कर्म करें जो वर्जित नही हैं।

गुरूजी--गृहस्थो के लिये सतरहवां मंगल धर्म है- अनवज्जानी कम्मानि
यानी वही कर्म करें जो वर्जित नही हैं।

जो कर्म वर्जित हैं, जिनको करना मना  है, उन्हें कदापि नही करें।

🌷एक गृहस्थ ऐसा कोई व्यापार-व्यवसाय ना करे जिससे अन्य लोगो को दुराचार का जीवन जीने में बढ़ावा मिलता हो, प्रोत्साहन मिलता हो, सहायता मिलती हो।

इसलिये भगवान ने कुछ व्यवसायों को वर्जित बताया।

सद्गृहस्थ के लिये ऐसे व्यवसाय करने की मनाही की--

(1)नशीले पदार्थो का व्यवसाय
(2)शस्त्रो का व्यवसाय
(3)प्राणियों के क्रय-विक्रय का व्यवसाय
(4)मांस का व्यवसाय
(5)जहर का व्यवसाय

(6)धर्म का व्यवसाय--धर्म को धन कमाने का माध्यम न बना लें।
इससे धर्म का विनाश होता है।
धर्म शिक्षक की चेतना मलिन हो जाती है, और सिखने वालो की भी।

धर्म शिक्षा का लक्ष्य लोक कल्याण ही हो।

🌺धर्म तभी शुद्ध रहता है जबकि उसे बिना बदले में कुछ पाने की भावना के साथ निस्वार्थ भाव से बांटा जाए।

धन कमाने का लक्ष्य हो जाने से धर्म दूषित हो जाता है।

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