🍁गुरूजी--गृहस्थो के लिये चौबीसवाँ उत्तम मंगल है--संतुष्टि।
गृहस्थ हैं तो परिश्रम से, पुरुषार्थ से, नीति नियमो के अनुसार ईमानदारी के साथ धन कमाए।
वर्तमान की मेहनत और पूर्व सत्कर्म के फलस्वरूप जो धन प्राप्त हो उसका सदुपयोग करें।
अपने तथा अपने परिवार के भरण पोषण के अतिरिक्त जो बचे उसे जनोपयोगी सत्कर्मो में समविभाग करे, समुचित उपयोग करे।
🌹धन कमाने का यह दृश्टिकोण होगा तो संतुष्टि का उत्तम मंगल अपने आप प्राप्त होगा।
अन्यथा तृष्णा के भंवर में पड़कर अपने को ही दुखी बनाता रहेगा।
संतुष्टि के मंगल लाभ से वंचित रह जाएगा।
संतुष्ट है तो जो है, कम या अधिक उसका सुख भोगेगा।
जो है अगर उससे असंतुष्ट रहेगा, तो उसके सुख से वंचित रह जाएगा।जो नही है उसकी तृष्णा में तड़पता ही रहेगा। जो है उससे असंतुष्ट रहेगा, तो सदा असंतुष्ट रहने का यानी दुखी रहने का स्वभाव बन जाएगा।जो नही है उसे पाने की लालसा में उसका सुख नही भोग पायेगा। क्योंकि एक तृष्णा की पूर्ति होते ही दूसरी जाग खड़ी होगी। तृष्णा की बाल्टी बिना पेंदे(bottom) की बाल्टी होती है । कभी भरी नही जाती।हमेशा खाली ही रहेगी।
🌷सन्तुष्टि नही तो सुख नही।
एक इच्छा पूरी हुई तो दूसरी अपना सिर उठाएगी।फिर जो नही है उसका दुःख सताने लगेगा।जो है उसका सुख विलीन हो जाएगा।मनचाही पूरी होने पर भी उसका सुख नही भोग पायेगा। किसी अन्य के पास अपने से अधिक है, ऐसा देखकर ईर्ष्या जाग उठेगी।ईर्ष्या की अग्नि में जलने लगेगा।बहुत कुछ प्राप्त होने पर भी ईर्ष्या रूपी असंतुष्टि की अग्नि में जलता रहेगा।
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