जीवन भर का अभ्यास
गुरूजी--केवल एक या एक से अधिक विपश्यना शिविरो में सम्मलित हो जाना ही सब कुछ नही है। यह तो जीवन भर का अभ्यास है।
विपश्यना का जीवन जीते रहना होगा, सतत सजग, सतत् सचेष्ट, सतत् प्रयत्न।
🌷 अतः अदम्य उत्साह के साथ विपश्यना के इस मंगल-पथ पर आगे बढ़ते चले।
गिरते-पड़ते और फिर खड़े होकर, घुटनो को सहलाकर, कपड़ो को झाड़कर आगे बढ़ते चलें।
हर फिसलन अगले कदम के लिये नई दृढ़ता और हर ठोकर लक्ष्य तक पहुँचने के लिये नई उमंग और नया उत्साह पैदा करने वाली हो।
अतः रुके नही, चलते जायँ।
कदम- कदम आगे बढ़ते जायँ।
यही मंगल विधान है।
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