हर क्रिया के प्रति जागरूकता हो
गुरूजी--मन प्रतिक्षण सक्रिय रहता है। साधना के समय मन पर बार-बार विचारों का आक्रमण होता रहता है।
ऐसे में यदि एक क्षण भी वर्तमान में स्थापित होता है तो बड़ा आराम महसूस होता नहीं होता है उसमे शक्ति है, मौन है, परम आनंद है।
उसके बाद ऐसे क्षणों की अवधि बढ़ाने की कोशिश करनी होती है।
वह कैसे करनी होगी ?
इस समय हम जो भी काम कर रहें हैं उसके प्रति जागरूक रहना होगा।
जैसे की हम चल रहें हैं तो चल रहे हैं, खा रहे हैं तो खा रहे हैं, लिख रहें हैं तो लिख रहें है, पढ़ रहें हैं तो पढ़ रहें हैं।
यों हर क्रिया के प्रति जागरूक रहना होगा।
यह एक मानसिक व्यायाम ही है। परंतु साधना के लिये आवश्यक है।
चित्त में पुराने दबे हुए संस्कारो के अनेक आवरण और प्रतिक्षण नए संस्कार की वृद्धि के बीच ऐसे वर्तमान के क्षण में स्थिर रहना बहुत ही कठिन है। फिर भी बहुत महत्त्व का है।
ऐसेे तूफ़ान में से वर्तमान क्षण पर स्थिर होने के प्रति प्रस्थान करना, आरूढ़ होना इसी का नाम सतिपट्ठान है।
स्मृति में स्थापित होने पर भीतर चोर की भाँति छिप कर बैठे हुए वासना आदि के सारे विकार आहिस्ता-आहिस्ता बाहर निकल जाते हैं।
💐साधना करते करते कितने सारे विक्षेप साधक के अंदर से उठते हैं, उस समय समता रखना जरुरी है।
थोड़ी सी बैचनी, क्रोध या राग-द्वेष किये बिना समता को पुष्ट करने से, विक्षेपो की उपेक्षा करने से, साधना पथ पर प्रगति होती रहती है।
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