गुरूजी डाक्टर ने कहा है कि यह रोग होने की संभावना है, बस इसी की चिंता है।
उत्तर--यदि मानस कमजोर है, तो रोग नही है तो भी आएगा।
आदमी जो सोचता है, वह होता है।अपना भविष्य आदमी स्व्यं बनाता है।
तुम बैठ के यही सोचोगी की हमको रोग है, हमको रोग है, तो रोग को न्योता(invite) दे रही हो।
🌷मन और शरीर का बड़ा गहरा सम्बन्ध है।जिस वक़्त कोई बात मन में जोर से उठी, तो तुरंत शरीर में संवेदना वैसी ही उठेगी।मन में जो घटना घटी वह शरीर के साथ जुड़ जाती है।उसे हम देख नही सकते।
चिंता को चिंता कि तरह देख सकना आसान नही है।भय को भय की तरह नही देख पाते।वह बहुत ऊँची बात है।पर संवेदना को देख सकते हैं।
तो संवेदना को देखना शुरू कर दो। जरुरी नही सिर से पाँव तक चक्कर लगाया जाय।जहाँ संवेदना हो रही है, उसी को साक्षी भाव से देखे जा रहें हैं।
देखते-देखते भय और चिंता की ताकत कम होती जायेगी, और फिर समाप्त हो जायेगी।
भय और चिंता भी अनित्य है, और संवेदना भी अनित्य है।
🌸बहुत बार हम पर जो संकट आनेवाला है, वह साफ़ दिखने लगता है।वह घटना तो बाद में घटेगी, मन में घबराहट पहले होगी।हम जो बीज डालेंगे, वह बीज डालते ही एक तरह की संवेदना होने लगेगी। फल तो बाद में आएगा, संवेदना पहले होने लगेगी।यह प्रकृति का नियम है।बीज भी संवेदना के साथ, फल भी संवेदना के साथ आएगा।
तो फल आने के पहले ही बीज के साथ हमने संवेदना देखनी शुरू कर दी, तो फल की ताकत भी कम हो जायेगी।ताकत कम होते होते जो फल आएगा वह फूल की छड़ी की तरह आएगा।उसकी ताकत कम कर दी।
आम आदमी को होश नही रहता है तो चिंता करता रहता है।हमारा क्या हो जाएगा, हमारा क्या हो जाएगा।तो उसका फल आनेवाला है, उसको मजबूत बना देंगे, बढ़ा देंगे।
हम चाहते हैं भला; और कर देते हैं बुरा, उससे बात उलटी हो जाती है।
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