🌷"सही माने में सुखी सुरक्षित"🌷
एक व्यक्ति धन- सम्पति संग्रह कर आसक्त(attachment) होता है। सोचता है, इनके सहारे मेरा भविष्य सुरक्षित रहेगा। अनागत काल(future) में मुझे कोई कष्ट नही होगा।
एक व्यक्ति पुत्र-कलत्र, बंधू- बांधव संग्रह कर आसक्त होता है। सोचता है इनके सहारे मेरा अनिष्ट नही होगा। संकट में भाई शरण देगा, पुत्र रक्षा करेगा।
लेकिन जब दिन पलटते हैं तो अपने को असहाय पाता है। न संग्रहित धन काम आता है, न पुत्र, बंधू रक्षा कर पाते हैं।
अपने कर्म- संस्कारो का दुखद प्रतिफल स्वयं ही भुगतना पड़ता है। किंचित भी सुखी नही रह पाता।
🌷 एक व्यक्ति धर्मपूर्वक परिवार पोषण करता हुआ शील का पालन करता है, समाधि का अभ्यास करता है, प्रज्ञा में स्थित होता है, विपश्यना साधना द्वारा राग, द्वेष और मोह का संवर करता है, और इस प्रकार धर्म संग्रह करता है, धर्म की शरण जाता है। उसके भी कभी दिन पलटते है, पूर्व के दूषित कर्मो के दुखद फल आते हैं।न धन काम आता है, न भाई साथ देता है, न पुत्र रक्षा करता है।
परंतु संग्रह किया हुआ धर्म सहायक बनता है, आचरण द्वारा रक्षा किया हुआ धर्म रक्षा करता है। धर्म धैर्य के साथ संकट का सामना करता है। बुरे दिन देर तक टिक नही पाते। खोया हुआ धन लौट आता है, आँख बदले हुए भाई बंधु फिर मिल जाते हैं।मुँह फेरे हुए पुत्र फिर आज्ञाकारी हो जाते हैं। सारा वातावरण अनुकूल हो जाता है।
ऐसा व्यक्ति सही माने में सुखी सुरक्षित रहता है...इस लोक में भी, परलोक में भी और सारे लोको के परे भी।
No comments:
Post a Comment