अभ्यास की निरंतरता-सफलता की कूँजी
गुरूजी ----
जागरूक रहकर यथावत सत्य को देखने का अभ्यास विपश्यना है । इसको बुद्धि-विलास का विषय बनाने से कोई लाभ नहीं होता । पढ़ने-सुनने या चर्चा-परिचर्चा से बौद्धिक स्तर पर विषय समझ लिया जा सकता है । इससे कुछ प्रेरणा भी मिल सकती है, परंतु वास्तविक लाभ अभ्यास करने में ही है ।
🌷 अपने मन को विकारों से विकृत न होने दें, सदा सचेत रहकर स्व (self) का निरिक्षण करते रहें, यह काम बिना अभ्यास के संभव नही है ।
जन्म-जन्मांतरों से मन पर संस्कारों, विकारों की जो परते पड़ी हैं और नए नए विकार बनाते रहने का जो स्वभाव बन गया है , उससे छुटकारा पाने के लिए साधना का अभ्यास नितांत आवश्यक है । उसे केवल सैद्धान्तिक स्तर पर जान लेना पर्याप्त नही है, और न केवल दस दिनों का एक शिविर ही काफी है । सतत अभ्यास की आवश्यकता है।
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