बुद्ध--
जिसे अपना कुशल करना है और परम पद निर्वाण उपलब्ध करना है उसे चाहिये कि वह--
सुयोग्य बने
सरल बने
सुभाषी बने
मृदु स्वभावी बने
निरभिमानी बने
संतुष्ट रहे
थोड़े में अपना पोषण करे
दीर्घ सूत्री योजनाओ में न उलझा रहे
सादगी का जीवन अपनाए
शांत इन्द्रिय बने
दुस्साहसी न हो
दुराचरण न करे
मन में सदैव यही भाव रखे की-
सारे प्राणी सुखी हो, निर्भय हो, आत्म-सुखलाभी हो।
अपमान न करे
क्रोध या वैमनस्य के वशीभूत होकर एक दूसरे के दुःख की कामना न करे।
🍁जिस प्रकार जीवन की भी बाजी लगाकर माँ अपने इकलौते पुत्र की रक्षा करती है, उसी प्रकार वह भी समस्त प्राणियो के प्रति अपने मन में अपरिमित मैत्रीभाव बढाए।
🌻जब तक निद्रा के आधीन नही है, तब तक खड़े, बैठे, या लेटे हर अवस्था में इस अपरिमित मैत्री भावना की जागरूकता को कायम रखे।इसे ही भगवान ने ब्रह्मविहार कहा है।
No comments:
Post a Comment