Tuesday, 12 April 2016

बुद्ध

बुद्ध--
जिसे अपना कुशल करना है और परम पद निर्वाण उपलब्ध करना है उसे चाहिये कि वह--
सुयोग्य बने
सरल बने
सुभाषी बने
मृदु स्वभावी बने
निरभिमानी बने
संतुष्ट रहे
थोड़े में अपना पोषण करे
दीर्घ सूत्री योजनाओ में न उलझा रहे
सादगी का जीवन अपनाए
शांत इन्द्रिय बने
दुस्साहसी न हो
दुराचरण न करे
मन में सदैव यही भाव रखे की-
सारे प्राणी सुखी हो, निर्भय हो, आत्म-सुखलाभी हो।
अपमान न करे
क्रोध या वैमनस्य के वशीभूत होकर एक दूसरे के दुःख की कामना न करे।

🍁जिस प्रकार जीवन की भी बाजी लगाकर माँ अपने इकलौते पुत्र की रक्षा करती है, उसी प्रकार वह भी समस्त प्राणियो के प्रति अपने मन में अपरिमित मैत्रीभाव बढाए।

🌻जब तक निद्रा के आधीन नही है, तब तक खड़े, बैठे, या लेटे हर अवस्था में इस अपरिमित मैत्री भावना की जागरूकता को कायम रखे।इसे ही भगवान ने ब्रह्मविहार कहा है।

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