असीम उपकार है माता-पिता का।
माता-पिता जननी है, जनक है।
कहने को तो कहते है की कोई ब्रह्मा हमारा सृजन करता है। परंतु प्रत्यक्ष सच्चाई तो यह है की माता-पिता ही हमारे ब्रह्मा है।वे ही हमारा सृजन करते है।
जिन अद्रश्य देवताओ को हम पूजते है, उनके मुकाबले माता-पिता प्रत्यक्ष देवता है और पूज्य है।
किसी को हाथ जोड़कर पूरब दिशा को पूजते हुऐ देखकर भगवान् बुद्ध ने कहा की माता-पिता ही पूरब दिशा है।उन्हें हाथ जोड़कर पूजो।यही सही पूजा हैं।
माता-पिता का उपकार असीम है,इस कारण संतान द्वारा उनका पूजन-अर्चन, उनकी सेवा सत्कार करना यही सही दिशा वंदन है,यही उत्तम मंगल भी है।
माता-पिता को दुःख देना जघन्य पाप-कर्म है।
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