"मंगल धर्म का अनोखा अनमोल उपहार!"
🌹जीवन के अंतिम क्षणों तक भी अपने कष्टो की जरा भी परवाह न करते हुए मैत्री के अनंत सागर भगवान बुद्ध ने एक धर्म-जिज्ञासु को धर्म सिखाया जो की उसके हित-सुख का कारण बना।
जीवन के अंतिम सांस तक सभी प्राणियो की अथक सेवा।
🍁आखरी सांस छोड़ने के पहले उनके ये अंतिम अनमोल बोल-
"वयधम्मा संखारा, अप्पमादेन संपादेथ।"
हे भिक्षुओ! सुनो, सारे संस्कार व्यय-धर्मा हैं, मरण-धर्मा हैं।
जितनी भी बनी हुई वस्तुए है, व्यक्ति है, घटनाए हैं, स्थितियां हैं, वे सब नश्वर हैं, भंगुर हैं, मरणशील हैं, परिवर्तनशील हैं।
यही प्रकर्ति का कठोर सत्य है।
प्रमाद (negligience)से बचते हुए, आलस्य से दूर रहते हुए, सतत सतर्क(alert) और जागरूक(aware) रहते हुए प्रकर्ति के इस सत्य का सम्पादन करते रहो।
इस सत्य में स्थित रहते हुए अपना कल्याण साधते रहो।
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